अषाढाा का तात्पर्य अपराजित से है। इसके दोनो पूर्वा और उत्तरा का सम्बन्ध विजय (युद्ध विजय, जीवन मुक्ति) से है।
राशि चक्र मे 253।20 से 266।40 अंश के विस्तार का क्षेत्र पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र कहलाता है। इसे अरब मंजिल मे
कहते है। पूर्व का अर्थ पहले और अषाढा का अर्थ अविजित या अशांत होता है। पूर्वाषाढ़ा के चार तारे, हाथी दांत के प्रतीक है। कुछ इसे हाथी की सूंड जैसा मानते है। इसके अधिष्ठाता देवता जल है।
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वरुण देव |
प्रतीकवाद - इसके देवता अप यानि जल है। अप ब्रम्हाण्डीय जल सभी दिशाओ मे फैला मानव और अन्य प्राणी, वनस्पति आदि का जन्म दाता है। यह एक अदभूत जीवन दायनी शक्ति है। जल प्रकृति की शक्तियो मे सबसे शक्तिशाली है। जल के दो पुत्र अप या अपत और नपत नदी झील के देवता है। वरुण समुद्र के रक्षक और बारिश के देवता है। दैहिक, दैविक, भौतिक कर्मो का संपादन जल से ही होता है। हिन्दू मिथिक अनुसार नदियो मे स्नान करने से पापो का मोचन और मनोकामना की पूर्ति होती है।
विशेषताए - यह युद्ध की घोषणा, विजय का नक्षत्र है। इस नक्षत्रोपन्न जातक को हराना मुश्किल होता है। यह अपराजित नक्षत्र कहलाता है। जातक प्रभावी, अधिकार युक्त, दार्शनिक, भावुक, निडर, आक्रामक, आमना-सामना करने वाला, समाज आरोहक होता है। इसमे प्राथमिक शिक्षा तीतर-बितर होती है। जल उद्योग, जल यात्रा, विदेश यात्रा लाभकारी होती है। पूर्वाषाढ़ा विवाह मे बाधक, दुखद वैवाहिक जीवन, शीघ्र जीत, प्रारम्भिक वर्षो मे सफलता का कारक है।
पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र फलादेश
पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र के देवता अप (अपह) यानि जल है। जल प्रकृति की हृदयंगम शक्ति है। इसी प्रकार पूर्वाषाढ़ा अजेय नक्षत्र है। जातक अजेय, स्वतंत्र, अहंकारी, प्रभावी, शक्तिशाली, निर्भीक, प्रसिद्धि चाहने वाला, नियमानुसार शिक्षा तितर बितर, छोटी उम्र मे सफल, सुवक्ता होने से सफल, शरण में आये का उपकार करने वाला, भाग्यवान चतुर होता है। यह नक्षत्र युद्ध की घोषणा से सम्बंधित है अतः जातक थोड़ा क्रोधी और तेज होता है। इसका जल से सम्बन्ध है अतः पानी से सम्बंधित उघोग, समुद्री विदेश यात्रा, जल यात्रा का प्रतीक है। उम्र वर्ष 8, 16, 21, 22, 26, 28, 30, 50 शुभ होते है।
पुरुष जातक - जातक सुगठित आकर्षक लम्बी पतली देह वाला, सुन्दर दन्त, लम्बे कान, चमकीली आंख, पतली कमर, लम्बी भुजा वाला होता है। ये सब इसके वक्तित्व को उभारते है। जातक नरम और दयालु, दूसरो का भला चाहने वाला, जाने-माने के बजाय अज्ञात की सहायता लेने वाला, साहसी और वीर किन्तु निर्णय लेने में असक्षम, जल्दबाजी मे गलत निर्णय लेने वाला, निर्णय पर अडिग, गलती पर सलाह नही मानने वाला, विशिष्ट आध्यात्मिक होता है।
जातक चिकत्सा या ललित कला मे विशेष सफल होता है। व्यापारिक विकास नौकरो पर निर्भर होता है। 32 उम्र तक कठिनाइया और रूकावट होती है। इसके बाद विकास होता है और 50 वे वर्ष मे उन्नति चरम सीमा पर होती है। जातक को माता-पिता के बजाय भाई-बहन से विकास मे सहायता मिलती है। व्यावसायिक जबाबदारियो के कारण घर से दूर रहना पड़ता है। पत्नी सुखदात्री, सामान विचारधारा वाली होती है। पुरुष जातक का विवाह विलम्ब से होता है।
स्त्री जातक - स्त्री जातक सुन्दर आकृति, गौर, लज्जावान, सदगुणी, शोभायुक्त होती है। इसकी बादाम जैसी आँखे सुंदरता में चार चाँद लगाती है यह उतसाहित और चेतन, हर बात में तर्क युक्त, आशायुक्त, वजनदार, बाधाओ मे भी लक्ष्य पाने को उत्सुक होती है। यह पालतू जानवर विशेषकर कुत्ता प्रेमी होती है। रिस्तेदारो मे वरिष्ठ होते हुए भी इसके माता-पिता भाई से कटु सम्बन्ध होते है।
यह उच्च शिक्षित कोषालय, चिकित्सा, विज्ञान, धार्मिक संस्था, ललित कला मे कार्यरत होती है। यदि चन्द्रमा बुध से युत हो तो लेखन व्यवसाय मे रहती है। पुरुष जातक की भाति 32 वर्ष तक कठिनाई होती है फिर 50 वर्ष तक चमकदार होती है। माता-पिता के प्यार और सहयोग की अभागी, पति के साथ सुखी, आनंदित होती है।
आचार्यो अनुसार पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र फल
पूर्वाषाढ़ा एक जलीय नक्षत्र है अतः ये लोग जहा प्रसन्न होते है वहा खूब बरसते है जहाँ नाराज होते है वहा सूखा ही रखते है। अर्थात क़्वचित रुष्ट, क़्वचिततुष्ट वाली स्थति होती है। स्वाभिमान भी इनमे कूट-कूट के भरा होता है। ये अपने तरीके से आनन्दित होते है। इनकी पत्नी भी मिलनसार होती है। ये लोग मित्रता भी मजबूत करते है। - वराहमिहिर
ये लोग स्वछन्द आदत वाले, स्वतंत्रता प्रिय, सामर्थ्यशाली, अपने काम मे कुशल होते है। इन्हे बार-बार पानी पीने की आदत होती है तथा पसीना भी बहुत आता है और कई बार मूत्र त्याग के लिए जाते है। यदि लत पड जाय तो शराब भी खूब पीते है। पर स्त्री रत होने के कारण शरीर मे शीतलता रहती है। - नारद
सामान्यतया जल के माध्यम से या नदी समुद्र पार के स्थानो से अच्छा धन कमाते है। सेतु बनाने से लाभ होता है। अधिक जल यात्रा करते है। पथकर, सीमाकर, जलीय वस्तु जैसे रेत, शंख, जलीय जीव जन्तु, मत्स्य पालन आदि से जीविका होती है। - पराशर
चंद्र : यदि चंद्र इस नक्षत्र में हो तो जातक धमंडी, अजेय, स्वतंत्र, तीव्र प्रभावी, दूसरो पर अधिकार युक्त, निडर, महत्वाकांक्षी, अधिक अच्छे की चाह वाला, गहन भावुक, दार्शनिक होता है। ये कभी-कभी विरोधी, कटुभाषी, क्रोधी होते है।
वराहमिहिर अनुसार चंद्र प्रभाव धमण्ड पति-पत्नी के मधुर सम्बन्धो का कारक है।
सूर्य : यदि सूर्य पूर्वाषाढ़ा मे हो, तो जातक पुष्टदेह, पराक्रमी, शत्रु संहारक, सेना नायक, शांत, दृढ़ शक्तिशाली, बुद्धिमान, राज्याश्रित, स्रियो को आकर्षित करने वाला होता है।
लग्न : यदि लग्न इस नक्षत्र मे हो, तो बलवान, परोपकारी, लोकपूज्य, शांत लेकिन कभी-कभी उग्र, गुप्त योजनाकारी, जल या जलीय वस्तुओ से लाभी, विजयी होता है।
पूर्वाषाढ़ा चरण फल
प्रथम चरण - इसका स्वामी सूर्य है। इसमे गुरु, शुक्र, सूर्य ♃ ♀ ☉ का प्रभाव है। धनु 253।20 से 256।40 अंश। नवमांश सिंह। यह अभिमान, विश्वास, आध्यात्मिकता का द्योतक है। जातक सिंह समान देह वाला, बड़ा मुख, नेत्र, कंठ वाला, बड़ी भोंहे, मोटे कंधे, घने रोम, विध्वंसकारी, अहंकारी दृढ़ बुद्धि होता है।
इस पाद मे जातक बहुत बुद्धिमान, विश्वासी, समाज में प्रशंसनीय छवि वाला, प्रतिष्ठित नैतिक कुल का, आर्थिक स्तर से ज़्यादा स्वाभिमानी, चरित्रवान होता है।
द्वितीय चरण - इसका स्वामी बुध है। इसमे गुरु, शुक्र, बुध ♃ ♀ ☿ का प्रभाव है। धनु 256।40 से 260।00 अंश। नवमांश कन्या। यह संचार, अध्यव्यसाय, भौतिकवाद का द्योतक है। जातक कोमल व गोरा, चौड़े करुणा युक्त नेत्र, दीर्घ ललाट, चौड़ा मुख, सुआचरणी, कवि, त्यक्त, मंद भाग्य, विद्वान कथाकार होता है।
जातक कर्मठ, वैवाहिक जीवन मे सफल, बुद्धिमान होता है। इसका उध्येश्य व्यापार मे निरन्तर उन्नति और विकास, उचाई प्राप्त करना होता है। प्रतिस्पर्धी इसकी गुणवत्ता सेवा, और बुद्धि के सामने घुटने टेक देता है।
तृतीय चरण - इसका स्वामी शुक्र है। इसमे गुरु, शुक्र, शुक्र ♃ ♀ ♀ का प्रभाव है। धनु 260।00 से 263।20 अंश। नवमांश तुला। यह विलासता, प्रेम, साझेदारी, भौतिकता का द्योतक है। जातक श्याम वर्ण, ऊँचा सिर, कोमल वाणी, संग्रही, गुप्त योजना वाला, काम निकलने मे निपुण, ज्येष्ठ औरतो से कोमल सम्बन्ध रखने वाला होता है।
जातक सफल व्यापारी, सुखद वैवाहिक जीवन बिना मेहनत के प्रचुर धन पाने वाला होता है।
चतुर्थ चरण - इसका स्वामी मंगल है। इसमे गुरु, शुक्र, मंगल ♃ ♀ ♂ का प्रभाव है। धनु 263।20 से 266।40 अंश। नवमांश वृश्चिक। यह गोपनीयता, रहस्य, मनोवाद, अभिमान, उददण्डता, भौतिक पराङ्मुखता का घोतक है। जातक का नाक का अग्र भाग चपटा, चौड़ा सिर, सामान्य कद, व्याकुल नेत्र, शत्रुवान, प्रलापी, उद्विग्न, व्यग्र, झगड़ालु होता है।
जातक गुप्त स्वभाव वाला, आलोकिक विषयो में रुचिवान, अंतर्राष्ट्रीय मामलों का विशेषज्ञ, शत्रु और प्रतिस्पर्धी युक्त, बच्चो की देख-रेख करने वाले N G O को पर्याप्त धन देने वाला होते है। ये अपने खुद की तारीफ करने वाले (अपने मियाँ मिट्ठू) होते है।
➧ यदि शुक्र बलि हो, तो जातक का झुकाव कला और सौन्दर्य के प्रति अधिक होता है।
आचार्यो ने चरण फल सूत्र रूप मे कहा है परन्तु अंतर बहुत है।
यवनाचार्य : पूर्वाषाढ़ा प्रथम चरण मे श्रेष्ठ व्यक्ति, द्वितीय चरण मे राजा,, तृतीय चरण मे परिवादी और चतुर्थ चरण में धनवान होता है।
मानसागराचार्य : पूर्वाषाढ़ा प्रथम चरण मे क्रोधी, द्वितीय चरण मे पुत्रवान, तृतीय चरण मे कामी, चतुर्थ चरण मे धनी होता है।
पूर्वाषाढ़ा विभूतियाँ
एडोल्फ हिटलर (जर्मन तानाशाह) का चन्द्रमा इस नक्षत्र मे था।
रजनीश-ओशो (दार्शनिक-भारत) का सूर्य इस नक्षत्र मे था।
पूर्वाषाढ़ा ग्रह चरण फल
सूर्य :
❋ यदि पूर्वाषाढ़ा सूर्य पर चन्द्र की दृष्टि हो, तो जातक सुन्दर संतति वाला, भाषण बाज. कलाविद होगा।
❋ यदि पूर्वाषाढ़ा सूर्य पर मंगल की दृष्टि हो, तो जातक सुरक्षा विभाग मे नियुक्त, यशस्वी होगा।
❋ यदि पूर्वाषाढ़ा सूर्य पर गुरु की दृष्टि हो, तो जातक मंत्री या मंत्री तुल्य होगा।
❋ यदि पूर्वाषाढ़ा सूर्य पर शनि की दृष्टि हो, तो जातक की कुसंगति होगी, मवेशियो से आजीविका करेगा।
पूर्वाषाढ़ा सूर्य चरण फल
प्रथम चरण - जातक अत्यधिक स्वाभिमानी, आनंद दायक जीवन जीने वाला, पुष्टदेहि, पराक्रमी, शत्रुहंता, दोहरा व्यक्तित्व वाला यानि आधा भीतिकवादी और आधा आध्यात्मिक, कार्य में कुशल, स्वछंदता, स्वतंत्रता प्रिय, नौकर या पैतृक व्यवसायी होता है।
द्वितीय चरण - जातक तेज और क्रोधी, धमंडी, जहाजी यात्री, आक्रामक, विदेश यात्रा कर धन कमाने वाला, नेवी मे अच्छे पद पर, स्त्रियो का आकर्षक होता है।
तृतीय चरण - जातक प्रसिद्धि की चाह रखने वाला, शक्तिशाली, दार्शनिक, जल्दबाजी मे गलत निर्णय लेने वाला, समुद्री रास्ते से व्यापार व्वयसाय करने वाला, वाद-विवाद मे सफल होता है। गुरु से युत हो, तो उद्यमी, नौकर तथा व्यापारी होगा /
चतुर्थ चरण - जातक क्रोधी, तेज, अहंकारी, निर्भीक, अपनी गलती पर दूसरो की सलाह नही मानाने वाला होता है। नेवी मे हो तो नायक होता है। गुरु से युत होने पर व्यवसायिक संस्थाओ के विशाल सम्राज्य वाला होता है।
चन्द्र :
❋ यदि पूर्वाषाढ़ा चन्द्र पर सूर्य की दृष्टि हो, तो जातक प्रसिद्ध वैभव शाली होगा।
❋ यदि पूर्वाषाढ़ा चन्द्र पर मंगल की दृष्टि हो, तो जातक विजयी, सेना या सुरक्षा मे होगा।
❋ यदि पूर्वाषाढ़ा चन्द्र पर बुध की दृष्टि हो, तो जातक शिल्पकार, सुवक्ता, प्रज्ञ होगा।
❋ यदि पूर्वाषाढ़ा चन्द्र पर गुरु की दृष्टि हो, तो जातक सुन्दर व्यक्तित्व वाला होगा।
❋ यदि पूर्वाषाढ़ा चन्द्र पर शुक्र की दृष्टि हो, तो जातक धार्मिक विचार वाला, धनवान होगा।
❋ यदि पूर्वाषाढ़ा चन्द्र पर शनि की दृष्टि हो, तो जातक शास्त्रज्ञ, धार्मिक लेकिन क्रूर होगा।
पूर्वाषाढ़ा चन्द्र चरण फल
प्रथम चरण - जातक क्रोधी, तेज, प्रभावी, आचार भ्रष्ट, दूसरो पर अधिकार युक्त, अहंकारी, जलीय वस्तु का प्रेमी होता है। जातक को प्यास अधिक लगती है इसलिए पानी बार-बार पीता है।
द्वितीय चरण - जातक सौम्य किन्तु तेज, चमकदार नेत्र, स्वाभिमानी और स्वतंत्र, महिलाओ का प्रिय, निडर, प्रसिद्धि की चाह वाला, परिवार मे अमूल्य, गरीबो का मददगार होता है।
तृतीय चरण - जातक शीघ्र प्रसन्न होकर लाभ देने वाला और जिससे नाराज हो जाय उसका नुकसान करने वाला, अपने तरीके से आनंदमय जीवन व्यतीत करने वाला, गहन भावुक, दार्शनिक होता है। 40 वर्ष पश्चात, प्रत्याशित कार्यो मे धन व्यय करेगा।
चतुर्थ चरण - जातक स्वाभिमान और स्वतंत्रता के साथ जीने वाला, तेज व चतुर, अपनो का भला करने वाला और दूसरो का अहित करने वाला, कभी-कभी विरोधी, दूसरो की स्त्री को चाहने वाला, घमंडी होता है।
मंगल :
❋ यदि पूर्वाषाढ़ा मंगल पर सूर्य की दृष्टि हो, तो जातक दुनिया से सम्मानित भाग्यशाली होगा।
❋ यदि पूर्वाषाढ़ा मंगल पर चंद्र की दृष्टि हो, तो जातक शारारिक अपंगता से पीड़ित, आपराधिक अभियोग का सामना करेगा।
❋ यदि पूर्वाषाढ़ा मंगल पर बुध की दृष्टि हो, तो जातक अनेक कला और विषयो का ज्ञाता, विद्वान होता है।
❋ यदि पूर्वाषाढ़ा मंगल पर गुरु की दृष्टि हो, तो जातक सभी साधन संपन्न होगा।
❋ यदि पूर्वाषाढ़ा मंगल पर शुक्र की दृष्टि हो, तो जातक स्त्रियों के लिए दान धर्म करने वाला, कामुक होगा।
❋ यदि पूर्वाषाढ़ा मंगल पर शनि की दृष्टि हो, तो जातक अपंग आवारा, अज्ञानी होगा।
पूर्वाषाढ़ा मंगल चरण फल
प्रथम चरण - जातक लोभी, युवतियो का संग पाने का इच्छुक, पराई स्त्रियो से यौनाचार में लिप्त, इन्ही कारणों से शरीर मे शिथिलता, अपनो का भला करने वाला होता है। कोई-कोई शराबी होता है।
द्वितीय चरण - जातक आचरण भ्रष्ट, स्त्रियो मे रत, वेश्या के यहा जाने वाला, व्यसनी, शराबी, गिद्ध दृष्टि वाला, कुसंगत वाला, उन्मादी, चिन्ताग्रस्त होता है।
तृतीय चरण - जातक स्वाभिमानी, जिससे प्रसन्न उसका हित करने वाला और जिससे नाराज उसका अहित करने वाला, आसानी से नशो का आदी, पथकर, सीमाशुल्क, सेतुकर आदि से आजीविका करने वाला, युद्ध निश्चयी, दीर्घायु होता है।
चतुर्थ चरण - जातक अत्यधिक स्वाभिमानी, स्वाभिमान अहंकार की सीमा तक, साहसी, निडर, सामर्थ्यवान, नेवी मे कमांडर या उच्च पद पर, शस्त्रादि चालान मे निपुण, समुद्र पार धन कमाने वाला होता है।
बुध :
❋ यदि पूर्वाषाढ़ा बुध पर चन्द्र की दृष्टि हो, तो जातक विश्वासपात्र, मिलनसार, लेखक होगा।
❋ यदि पूर्वाषाढ़ा बुध पर मंगल की दृष्टि हो, तो जातक अश्लील विषय का लेखक होगा।
❋ यदि पूर्वाषाढ़ा बुध पर गुरु की दृष्टि हो, तो जातक अत्यंत बुद्धिमान, आकर्षक व्यक्तित्व, राजनीतिज्ञ होगा।
❋ यदि पूर्वाषाढ़ा बुध पर शनि की दृष्टि हो, तो जातक क्रूर, धूर्त, दुःखी अस्तित्व वाला होता है।
पूर्वाषाढ़ा बुध चरण फल
प्रथम चरण - जातक दुराचारी, पर स्त्रियो के साथ रंगरेलिया मनाने वाला, घमंडी, शराबी, आक्रामक प्रसिद्धि की चाह वाला होता है। स्त्री जातक सुख हीन और तस्कर, शिक्षा क्रमबद्ध नही होती है।
➧ यदि शनि की युति हो, तो व्यापारी, शुक्र की युति हो तो विदेश यात्री और प्रचुर धन एकत्रित करने वाला, शुक्र और चन्द्र की युति हो तो जन्म स्थान पर वापस न आकर विदेश मे ही बसेगा।
द्वितीय चरण - जातक स्वतंत्रता प्रिय, स्वाभिमानी, समुद्री यात्रा द्वारा व्यापार करने मे सफल, स्वच्छंद आचरण करने वाला, पुरुषो से भेदभाव और स्त्रियो का हित करने वाला व्यसनी होता है।
➧ जातक सरकारी नौकरी में हो, तो प्रशासक या मंत्री का सहायक और स्वतंत्र व्यवसायी हो, तो कानून विशेषज्ञ या लेखा नियंत्रक होता है।
तृतीय चरण - जातक सुन्दर, मेघ के स्वाभाव वाला, स्वभिमान पर जरासी भी आंच भी नहीं आने देने वाला होता है। जातक अपने कार्य में कुशल और सामर्थ्य वान होता है। इसकी पत्नी सुन्दर और मिलनसार होती है।
चतुर्थ चरण - जातक कुटिल, जिससे नाराज होता है उसका अहित करने वाला, मनमानी करने वाला, दंड पाने वाला होता है। गुरु से युत हो तो सरकारी कार्यो से विदेश यात्रा करेगा। 42 से 52 साल की उम्र मे गंभीर बाधाओ का सामना करना पड़ता है।
गुरु :
❋ यदि पूर्वाषाढ़ा गुरु पर सूर्य की दृष्टि हो, तो जातक निर्धन, सबसे उपेक्षित होगा।
❋ यदि पूर्वाषाढ़ा गुरु पर चंद्र की दृष्टि हो, तो जातक अत्यंत सौभाग्यशाली, प्रचुर धन वाला, एसो-आराम के साथ सुखी पारवारिक जीवन व्यतीत करने वाला होता है।
❋ यदि पूर्वाषाढ़ा गुरु पर मंगल की दृष्टि हो, तो जातक कठोर, समस्या उत्पन्न करने वाला, शत्रु पीड़ित होगा।
❋ यदि पूर्वाषाढ़ा गुरु पर बुध की दृष्टि हो, तो जातक राजनीतिज्ञ, मंत्री या मंत्री के बराबर होगा।
❋ यदि पूर्वाषाढ़ा गुरु पर शुक्र की दृष्टि हो, तो जातक दीर्घ जीवन वाला, भाग्यवान होगा।
❋ यदि पूर्वाषाढ़ा गुरु पर शनि की दृष्टि हो, तो जातक चोर, तस्कर या चीजे चुराने वाला होगा।
पूर्वाषाढ़ा गुरु चरण फल
प्रथम चरण - जातक दुष्ट, बादलो वाले स्वभाव वाला अर्थात कही वृष्टि और कही अनावृष्टि, किसी से राजी हो, तो उसका भला और किसी से नाराजी हो, तो उसका नुकसान करने वाला, निरंकुश, स्वेच्छाचारी होता है।
द्वितीय चरण - जातक सौम्य, स्वतंत्र, स्वाभिमानी, सुन्दर, मनोकुल पत्नी वाला, समुद्री आभूषण का प्रेमी, समुद्री वस्तुओ का व्यापार करने वाला होता है। कुछ जातक मछुआरे, नाविक, समुद्र तटवासी होते है।
तृतीय चरण - जातक सुन्दर, स्वाभिमानी, अपने तरीके से आनंदित होने वाला, स्वतंत्र आचरण करने वाला, सामर्थ्यशाली, बहुमूत्री रोग से ग्रस्त, समुद्र पर्यटनी होता है।
चतुर्थ चरण - जातक क्रोधी, शराब बहुत ज्यादा पीने वाला, भेदभाव करने वाला, समुद्र किनारे या जलाशय के निकट निवास करने वाला, सड़क सीमा कर, पथकर, सेतुकर आदि से आजीविका करने वाला होता है। बुध गुरु की युति हो, तो जातक शस्त्र उत्पादन के नवीन प्रयोग मे लगा रहता है।
शुक्र :
❋ यदि पूर्वाषाढ़ा शुक्र पर चंद्र की दृष्टि हो, तो जातक राजसी भोग विलाश युक्त होता है।
❋ यदि पूर्वाषाढ़ा शुक्र पर मंगल की दृष्टि हो, तो जातक धनवान, भवन वाहन आदि का स्वामी होगा।
❋ यदि पूर्वाषाढ़ा शुक्र पर गुरु की दृष्टि हो, तो जातक का पुनर्विवाह होगा, परिवार बड़ा होगा।
❋ यदि पूर्वाषाढ़ा शुक्र पर शनि की दृष्टि हो, तो जातक भाग्यवान, सभी खुशिया प्राप्तक होगा।
पूर्वाषाढ़ा शुक्र चरण फल
प्रथम चरण - जातक व्याकुल, पराधीन, नौकर, कुआचरण वाला, दुष्चरित्र, दूसरो की स्त्री को चाहने वाला, मदिरा का शौकीन, अहंकारी होता है। विवाह शीघ्र होता है।
द्वितीय चरण - जातक स्वतंत्र, अभिमानी, आनंदित, मिलनसार, सुन्दर पत्नी वाला, लत पड जाने पर बहुत ज्यादा शराब पीने वाला, जलीय वस्तु, रेती, सेतुकर आदि से आजीविका करने वाला होता है।
तृतीय चरण - जातक स्वाभिमान से भरा हुआ, सफल, समुद्री मार्ग से निर्यातक, कार्य कुशल, अधिक प्यास, अधिक मूत्र, अधिक श्वेद से परेशान होता है।
➧ अकेला शुक्र हो, तो स्त्री जातक सामान्यतया नौकरी नही करेगी, शिक्षित होते हुए भी बेरोजगार होगी।
चतुर्थ चरण - जातक चरित्रहीन, स्त्रियो से अनैतिक अवैध यौन सम्बन्ध रखने वाला, गुस्सैल, घमंडी, दुश्चरित्र, क्रोधी होता है।
➧ मतान्तर - जातक मुखर वक्तित्व वाला, उदार, धनी और दयालु, जरुरतमंदो का मददगार होगा, दार्शनिक विचारधारा वाला जिसे वह आर्थिक लाभ के लिए उपयोग नही करेगा।
शनि :
❋ इस नक्षत्र मे शनि पर सूर्य की दृष्टि शुभ होती है। जातक सभी सुख धन, नाम, सृमद्धि प्राप्त करेगा।
❋ यदि पूर्वाषाढ़ा शनि पर चंद्र की दृष्टि हो, तो जातक माता को कष्ट दायक किन्तु स्वयं का परिवार सुखी होगा।
❋ यदि पूर्वाषाढ़ा शनि पर मंगल की दृष्टि हो, तो जातक सभी के द्वारा नापसंद किया जाने वाला, क़ानूनी सजा याप्ता, क्रूर और धूर्त होगा।
❋ यदि पूर्वाषाढ़ा शनि पर बुध की दृष्टि हो, तो जातक अच्छी प्रतिष्ठा प्राप्त राजनीतिज्ञ होगा।
❋ यदि पूर्वाषाढ़ा शनि पर गुरु की दृष्टि हो, तो जातक अध्यापक, शोधक होगा।
❋ यदि पूर्वाषाढ़ा शनि पर शुक्र की दृष्टि हो, तो जातक माता की अपेक्षा पिता से पालित होगा।
पूर्वाषाढ़ा शनि चरण फल
प्रथम चरण - जातक विध्वंसकारी, तुनुक मिजाजी, बदलो की भांति जहा बरसा वहा पर भी नुकसान और जहा नही बरसा वहा पर भी नुकसान, अध्यधिक क्रोधी, निर्लज़्ज़ होता है। यदि गुरु से युत हो, तो प्रशासक, चतुर और धार्मिक होता है।
द्वितीय चरण - जातक विद्वान् सबको संतृप्त करने वाला, चतुर, शरणागत का उपकार करने वाला होता है, ऐसा जातक पर्यटन प्रेमी और समुद्री यात्रा बहुत करता है।
➧ माध्यमिक शिक्षा होगी। भाई सहयता नही करेगे, साथी धोखा देगे। यदि यह चरण लग्न हो तो 10 वर्ष तक गंभीर स्वास्थ्य समस्या रहेगी।
तृतीय चरण - जातक स्वाभिमान से भरा हुआ, पत्नी मन-तन प्रिया, स्थिर मित्रवान, स्वछन्दता प्रिय, जल के माध्यम से आजीविका करने वाला होता है।
चतुर्थ चरण - जातक घमंडी, अश्लील भाषी, दुराचारी, दूसरो की औरतो को चाहने वाला, शराब की लत लग जाने पर नही छोड़ने वाला, रात-दिन नशे में धुत, चतुर, चालक होता है। मंगल की युति हो, तो शिक्षा व व्यापार व्यवसाय मे बाधा होती है।
पूर्वाषाढ़ा राहु चरण फल
पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र का स्वामी शुक्र और राहु नैसर्गिक मित्र है। अतः इस नक्षत्र में राहु शुभ फल दायक है तथा शुक्र से सभी वस्तुओ का लाभ जातक को मिलता है। यदि शुक्र नीच और कमजोर हो, तो अधिक दुःख, रंज-गम, अप्रसन्नता होती है। जातक की हानि और स्त्री के कारण सजा होती है। स्वास्थ्य ख़राब रहता है।
प्रथम चरण - अनेक कष्ट, रोगी, और माता-भाई बहन की जिम्मेदारी होगी /
द्वितीय चरण - जातक को मूत्राशय और अंडकोष के रोग होगे।
तृतीय चरण - अनावश्यक दूसरो के मामलो मे दखल देगा।
चतुर्थ चरण - जातक मनोहर, प्रभावशाली, नेक, विश्वासपात्र, कलाविद होगा।
पूर्वाषाढ़ा केतु चरण फल
प्रथम चरण - प्यास ज्यादा लगना, पेशाब ज्यादा होना, मूत्रकच्छ, शराब की लत लगना, कलह होते है।
द्वितीय चरण - शत्रुओ से पराजय, स्त्री से बदनामी और पीड़ा, पारवारिक कलह व्यवसायिक हानि होती है।
तृतीय चरण - जलीय वस्तुओ से अल्प लाभ, व्यसन, शारीरिक मध्यम सुख, हानि, रोग होते है।
चतुर्थ चरण - इस चरण मे अत्यंत अशुभ फल होते है। चर्म रोग, शराब का आदी, प्रेम प्रसंग या यौन रोगो के कारण बदनामी, शारीरिक आधात, जीवन अस्त-व्यस्त होता है।
जातक = वह प्राणी जिसका ज्योतिषीय विचार किया जा रहा हो।
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डॉ. निर्मल पाटनी
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